Tuesday, October 14, 2008

अकाल और उसके बाद

कई दिनों तक चुल्हा रोया चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोयी उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त

दाने आए घर के अन्दर कई दिनों के बाद
धुंआ उठा आँगन के ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखे कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखे कई दिनों के बाद

-नागार्जुन (1952)

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया रचना प्रेषित की है। आभार।