Wednesday, September 24, 2008

स्पेनी भाषा

स्पेनी भाषा दुनिया मे दूसरी सर्वाधिक बोलने वाली भाषा है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की भी आधिकारिक भाषा है। यह सिर्फ स्पेन की ही नहीं बल्कि लैटिन अमेरिका सहित कुल २१ देशो की आधिकारिक भाषा है। स्पेन मे इसकी चार उपभाषा-कास्तिल्याना, कातालान, गलिसियाई और बास्क-प्रचलन मे है। इस भाषा मे कई प्रमुख साहित्य की रचना हुई है। मिगेल दे सेर्वान्तेस द्वारा लिखित "दोन किखोते" ४०० वर्षो के बाद भी लोगो के बीच उतना ही लोकप्रिय है। इसका अनुवाद तकरीबन संसार की सभी भाषाओ मे हो चुका है। पाब्लो नेरुदा, गाब्रिएल गार्सिया मर्केज़, रुबेन दारियो इत्यादि इस स्पेनी भाषा के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकारों मे हैं।

इस भाषा की प्रचार-प्रसार के लिए स्पेन सरकार ने "Instituto Cervantes" की स्थापना की है। यह संस्थान स्पेनी भाषा मे अंतर्राष्ट्रीय डिप्लोमा के लिए परीक्षा आयोजित करता है जो की शिक्षा, सामजिक नीति एवं खेल मंत्रालय, स्पेन सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है जिसे दुनिया के सारे शिक्षण संस्थान एवं व्यापारिक प्रतिष्ठान भी मान्यता देते हैं।

Tuesday, September 23, 2008

स्पेनी पुर्तगाली इतालवी एवं लातीनी अमेरिकी भाषा अध्ययन केन्द्र

स्पेनी पुर्तगाली इतालवी एवं लातीनी अमेरिकी भाषा अध्ययन केन्द्र की शुरुआत हुए ३ दशक से भी ज्यादा समय गुजर गया है। आज यह दक्षिणी पूर्वी एशिया में स्पेन एवं लैटिन अमेरिका के बारे में अध्ययन करने के लिए अग्रणी संस्थानो मे एक है। यहाँ स्पेनी एवं लैटिन अमेरिकी भाषा, साहित्य, भाषा विज्ञान, सभ्यता-संस्कृति, इतिहास, सामाजिक-राजनितिक संरचना इत्यादि इन सारी चीजों की पढ़ाई होती है। इस केन्द्र मे स्नातक से पी० एच० डी० तक पाठ्यक्रम हैं। डिप्लोमा पाठ्यक्रम मे पुर्तगाली और इतालवी भाषा की भी पढ़ाई होती है।

वर्त्तमान मे प्रो० अपराजित चट्टोपाध्याय यहाँ के केन्द्राध्यक्ष हैं। "हिस्पानिक होरिजोन" १९८५ से निरंतर प्रकाशित होने वाली इस केन्द्र की वार्षिक पत्रिका है।

इस भाषा की लोकप्रियता एवं बाज़ार की ज़रूरतों को ध्यान मे रखते हुए केन्द्र मे स्पेनी भाषा की अल्पावधि पाठ्यक्रम और स्पेनी भाषी छात्रों के लिए भारतीय सभ्यता-संस्कृति के बारे मे स्पेनी भाषा मे पाठ्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव विचाराधीन है।

Sunday, September 21, 2008

भाषा साहित्य एवं संस्कृति अध्ययन संस्थान

भाषा साहित्य एवं संस्कृति अध्ययन संस्थान की शुरुआत जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही सन् १९६९ में हुई थी। शुरुआत में यहाँ मुख्यतः यूरोपीय एवं एशियाई भाषा-अरबी, चीनी, फ्रांसीसी, जर्मन, जापानी, कोरियाई, फारसी, रुसी एवं स्पेनी भाषा की पढ़ाई होती थी। यह पाठ्यक्रम स्नातक एवं परास्नातक साथ-साथ जुडा है। बाद में परास्नातक स्तर पर हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, भाषा विज्ञान की पढ़ाई भी होने लगी। अब इन सभी भाषाओं में पी० एच० डी० तक पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। पस्तु, मंगोलियाई, भाषा इंडोनेशिया और उर्दू भाषा में डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी उपलब्ध है। इन भाषाओं के अध्ययन एवं शोध कार्य के लिए कई केन्द्र बनायें गए हैं जो निम्न हैं-
  1. अरबी एवं अफ्रीकी भाषा अध्ययन केन्द्र
  2. चीनी एवं दक्षिणी पूर्वी एशियाई भाषा अध्ययन केन्द्र
  3. फ्रांसीसी भाषा अध्ययन केन्द्र
  4. जर्मन भाषा अध्ययन केन्द्र
  5. भारतीय भाषा केन्द्र
  6. जापानी कोरियाई एवं उत्तर पूर्वी एशियाई भाषा अध्ययन केन्द्र
  7. अंग्रेजी भाषा अध्ययन केन्द्र
  8. भाषा विज्ञान अध्ययन केन्द्र
  9. फारसी एवं मध्य एशियाई भाषा अध्ययन केन्द्र
  10. रुसी भाषा अध्ययन केन्द्र एवं
  11. स्पेनी पुर्तगाली इतालवी एवं लातीनी अमेरिकी भाषा अध्ययन केन्द्र
भाषाओं में शोध कार्य एवं विकास के लिए एक भाषा प्रयोगशाला भी है जो की विश्वविद्यालय के पुराने परिसर में स्थित है। यह भारत की सर्वोत्तम प्रयोगशालाओ में एक है। यहाँ सॉफ्टवेयर और दृश्य-आवाज पाठ्य सामग्री भी तैयार की जाती है। प्रयोगशाला की बहुत सारी मशीने जापान, जर्मनी, रूस, इरान इत्यादि देशों से उपहारस्वरूप प्राप्त हुई है। इस प्रयोगशाला में एक सभागार, तीन कैमरा युक्त विडियो स्टूडियो, विडियो प्रदर्शन कक्ष इत्यादि है। प्रो० वरयाम सिंह अभी यहाँ के संस्थानाध्यक्ष हैं। ११ वीं० पंचवर्षीय योजना के तहत इस संसथान का और भी विस्तार किया जाना है और भारतीय भाषा केन्द्र को अलग भारतीय भाषा संस्थान बनाया जाना है। साथ ही और भी अन्य भारतीय और विदेशी भाषा में पाठ्यक्रम और शोध कार्य की शुरुआत होनी है।

Saturday, September 20, 2008

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय भारत की राजधानी नई दिल्ली में प्रकृति की गोद में अरावली पर्वत श्रंखला पर१००० एकड़ क्षेत्र मे अवस्थित है। इसकी स्थापना १९६९ ई० में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरूके नाम पर हुई। यहाँ १३ संस्थानो-
  1. कला एवं सौन्दर्यबोध संस्थान
  2. जैवप्रौद्योगोकी संस्थान
  3. संगणक एवं पद्यति विज्ञान संस्थान
  4. पर्यावरण विज्ञान संस्थान
  5. सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान
  6. अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान
  7. भाषा साहित्य एवं संस्कृति अध्ययन संस्थान
  8. जीव विज्ञान संस्थान
  9. भौतिक विज्ञान संस्थान
  10. सामाजिक विज्ञान संस्थान
  11. विशिष्ट परमाण्विक औषधि केन्द्र
  12. विशिष्ट संस्कृत अध्ययन केन्द्र और
  13. विधि और शासन अध्ययन केन्द्र
मे लगभग ५००० छात्र एवं छात्राएँ विभिन्न पाठ्यक्रम स्नातक से पी० एच० डी० तक मे अध्ययनरत हैं। स्नातक की पढ़ाई सिर्फ़ विदेशी भाषा में भाषा साहित्य एवं संस्कृति अध्ययन संसथान में ही होती है शेष संस्थानों में परास्नातक एवं उससे आगे के पाठ्यक्रम हैं। यहाँ एक केंद्रीय पुस्तकालय है जिसमे विभिन्न विषयों के ५.४५ लाख पुस्तको का संग्रह है। पुस्तकालय ९६५ पत्रिका का नियमित सदस्य है और १४८ पत्रिका उपहारस्वरूप या आदान-प्रदान के जरिये आती है। इसके अत्याधुनिक वातानुकूलित साइबर पुस्तकालय मे १५३ संगणक यन्त्र इन्टरनेट सुविधा के साथ उपलब्ध है और अंधे छात्रों के लिए विशेष सुविधा है। यह एक आवासीय परिसर है। छात्रों के रहने के लिए १६ छात्रावास - गंगा, झेलम, सतलज, यमुना, पेरियार, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, साबरमती, ताप्ती, माही, मांडवी, लोहित, चंद्रभागा, ब्रहमपुत्र एवं महानदी - चार भाग उत्तराखंड, दक्षिनापुरम, पस्चिमाबाद और पूर्वांचल मे विभाजित है एवं एक नए छात्रावास कोयना का निर्माण कार्य प्रगति पर है।

प्रो० यशपाल और प्रो० बी० बी० भट्टाचार्य यहाँ के कुलपति एवं उपकुलपति हैं। यहाँ के विद्यार्थी पढ़ाई ही नही बल्कि राजनीति में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ सर्वश्रेष्ठ छात्र संघो में एक है। यहाँ कई छात्र राजनितिक संगठन हैं जिनमे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (ABVP), नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ़ इंडिया (NSUI), आल इंडिया स्टुडेंट असोसिएशन (AISA), स्टुडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (SFI), आल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन (AISF), बहुजन स्टुडेंट फ्रंट (BSF) इत्यादि। छात्र संघ का चुनाव प्रति वर्ष अक्टूबर या नवम्बर महीने में होता है। यहाँ बाहुबल की नहीं बल्कि सिद्धांतों की राजनीति होती है।

Friday, September 19, 2008

गया-एक परिचय

मैं बिहार राज्य के मगध प्रमंडल एवं गया जिला मुख्यालय गया शहर का रहने वाला हूँ। प्राचीन काल में इसे मगध कहा जाता था और यहाँ के निवासी मागध। यह झारखंड और बिहार की सीमा पर फल्गु नदी (निरंजना नदी) के किनारे अवस्थित है। गया की प्रसिद्धी मुख्य रुप से एक धार्मिक नगरी के रुप में है। इस शहर के नाम के साथ एक कहानी जुड़ी है। कहते हैं पहले इस शहर में गयासुर का राज हुआ करता था। जब भगवन विष्णु ने उसका वध करते समय उसे एक वरदान मँगाने को कहा तो उसने इस शहर का नाम अपने नाम पर रखने की इच्छा जाहिर की। तभी से इस शहर का नाम गया है। हर वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में पितृपक्ष के अवसर पर देश-विदेश के हजारो श्रद्धालु अपने पूर्वजो की आत्मा की जन्म - जन्मान्तर के बंधनो से मुक्ति, मोक्ष एवं स्वर्ग की प्राप्ति के लिए यहाँ पिंडदान करने आते हैं। यह शहर सड़क, रेल और वायु तीनो मार्गों द्वारा जुडा है। यह गया रेलवे स्टेशन से १ किलोमीटर एवं बिहार एवं झारखण्ड के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा सुजाता अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा से ४ किलोमीटर एवं बिहार की राजधानी पटना शहर से १०० किलोमीटर की दुरी पर है। गया का उल्लेख महाकाव्य रामायण में भी मिलता है।

गया के दर्शनीय एवं धार्मिक स्थल - विष्णुपद मन्दिर, मंगलागौरी, रामशिला, बोधगया, वानावर (बराबर) पहाड़ एवं गुफा, बिथोशरीफ़ इत्यादि।

विष्णुपद मन्दिर का निर्माण १७८७ में इंदौर (मध्य प्रदेश) के होल्कर वंश की साम्राज्ञी महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था जो की हिन्दुओं के लिए काफी पवित्र स्थल है। कथाओ के अनुसार जब भगवन विष्णु गयासुर का वध करने को अवतरित हुए थे उसी समय उनका पद चिह्न यहाँ अंकित हो गया था जो कि मन्दिर परिसर में मौजूद हैं और यहाँ इसी कि पूजा होती है और मन्दिर का निर्माण भी इसी पद चिह्न के ऊपर किया गया है। लोगो का यह भी मानना है की यहाँ गयासुर का शाप है कि इस जगह पर प्रतिदिन कम-से-कम ५ चिता नहीं जली तो प्रलय आ जाएगा। एक कहानी फल्गु नदी से भी जुड़ी हुई है। जब भगवन राम अपनी पत्नी सीता सहित अपने पिता का पिंडदान करने आए थे तभी सीता ने इस नदी की गद्दारी पर इसे श्राप दिया की तू हमेशा सूखी रहेगी। पितृपक्ष के अवसर पर इसमे काफी भीड़ रहती है। वर्त्तमान में इस मन्दिर का संचालन यहीं के पंडा लोग करते हैं जिसे प्रसाशन द्वारा "विष्णुपद मन्दिर न्यास" में परिवर्तित करने की कोशिश की जा रही है ताकि मन्दिर परिसर का समुचित विकास और श्रधालुओं को बेहतर सुविधा दिया जा सके।

बोधगया यहाँ से १३ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है जो बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए बहुत ही पवित्र स्थल है। यही पीपल के पेड़ (बोधी वृक्ष) के निचे राजकुमार सिद्धार्थ को बुद्धत्व (ज्ञान) की प्राप्ति हुई थी तभी से वे भगवान बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। उसी पीपल के पास सम्राट अशोक ने मन्दिर का निर्माण करवाया जो आज महाबोधि मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है जिसके पुरे मन्दिर परिसर को वर्ष २००२ में यूनेस्को द्वारा विश्वदाय स्मारक घोषित किया गया है। यहाँ प्रतिवर्ष दिसम्बर के महीने में कालचक्र पूजा एवं बौध महोत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमे देश-विदेश के लोग भाग लेते हैं। कालचक्र पूजा के लिए ये अपने सर्वोच्च धर्म गुरु दलाई लामा या करमापा लामा या दोनों को बुलाते हैं।

वानावर पहाड़ एवं गुफा यहाँ से लगभग २० किलोमीटर उत्तर मे स्थित है। पहाड़ के ऊपर भगवान शिव का मन्दिर है, जहाँ हर वर्ष हजारों श्रद्धालू सावन के महीने मे भगवान जल चढाते है। कथाओं के अनुसार इस मन्दिर का निर्माण बानासुर नामक राक्षस ने करवाया था। पुनः सम्राट अशोक ने इसकी मरम्मत करवाया। इसके नीचे सतघरवा की गुफा है, जो प्राचीन स्थापत्य कला का नमूना है। इस पर जाने हेतु पातालगंगा , हथियाबोर और बावनसीढ़ी तीन मार्ग है, जो क्रमशः दक्षिण, पश्चिम और उत्तर से है, पूरब में फलागु नदी है। वानावर गुफा बौद्ध धर्म के लिए महत्वपूर्ण है। यह बराबर और नागार्जुनी श्रृंखला के पहाड़ पर स्थित है। इस गुफा का निर्माण बराबर और नागार्जुनी पहाड़ी के बीच सम्राट अशोक और उनके पोते दशरथ के द्वारा कराइ गई थी। इस गुफा उल्लेख ई।एम. फोस्टर की किताब " पैसेज टू इंडिया" में भी किया गया है। इन गुफओं में से ७ गुफाएं भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरख में है।

गया में अवस्थित मगध विश्वविद्यालय बिहार का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। इसके अंतर्गत मगध एवं पटना प्रमंडल के ४४ महाविद्यालय एवं ८५ मान्यता प्राप्त महाविद्यालय हैं जिसमे गया महाविद्यालय , अनुग्रह नारायण स्मारक महाविद्यालय, जगजीवन महाविद्यालय, मगध महिला महाविद्यालय इत्यादि प्रमुख हैं जिसमे कला, विज्ञान, वाणिज्य, प्रबंधन, विधि इत्यादि की शिक्षा दी जाती है। यहाँ अनुग्रह नारायण मगध आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, यूनानी तिब्ब महाविद्यालय, होम्योपैथी महाविद्यालय इत्यादि भी है।

शहर से ५ किलोमीटर की दुरी पर मानपुर नामक स्थान है जहाँ लोग कपडा उद्योग से जुड़े हुए हैं। पहले यहाँ भागलपुर के रेशम के भी कपडे बनाये जाते थे लेकिन कुछ आतंरिक समस्याओं के कारण अब उनका उत्पादन बंद हो गया है जिसे पुनः शुरु करने की कवायद चल रही है। बोधगया एवं विष्णुपद मन्दिर के कारण यहाँ के काफी लोग पर्यटन व्यवसाय से भी जुड़े हुए हैं। अक्टूबर से फरवरी तक बड़ी संख्या में चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, श्रीलंका इत्यादि देशो से पर्यटक आते हैं। यहाँ की तिलकुट, अनरसा, लाई इत्यादि मिठाई बिहार एवं झारखण्ड ही नहीं बल्कि पुरे भारत में प्रसिद्ध है।